हियै री हबोळ है - डिंगळ रसावळ

हियै री हबोळ है - डिंगळ रसावळ

"दीपै वांरा दैस ज्यांरा साहित जगमगै" नै जीवण में सांगोपांग उतारतां प्रबुद्ध रचनाकार दीपसिंह भाटी 'दीप' रणधा री पोथी 'डिंगळ रसावळ' म्हारै हाथ वळु है। इणनै देखतां अर बाचतां ई म्हनै स्व. उदयराज जी उज्ज्वल री बानगी- दीपै वांरा दैस ज्यांरा साहित जगमगै, फट याद आयगी। स्व. उज्ज्वल सा घणा दिन बाड़मेर में वांरै सुपुतर मगराज जी उज्ज्वल आर. ए. एस. रै सागै रह्या हा। म्हूं वांरै अठै अक्सर आतौ जातौ हो। वै म्हनै कैई बार राजस्थानी री वांरी रच्यौड़ी रचनावां कंठस्थ गाय'र सुणावता जद लागतौ कोई अणहद नाद हियै में बाज रैयो है। हाथवळु पोथी 'डिंगळ रसावळ' इणीज श्रेणी री है, हरख व्है है।

पाठकां नै हिलोर कर राखण वाळी आ पोथी १२८( योगांक १+२+८= ११) पानां री पूरी पढ्यां बिना छोड़णी रो मन नी करै। म्हैं पूरी पोथी मनोयोग सूं पढी।थुथकी ना़खै जैड़ी है, जी सौरो व्हैग्यौ। आ पोथी 'डिंगळ रसावळ' राजस्थानी भासा रै नुवैं लिखारां सारूं मील रो पत्थर साबित व्हैला, इणमें संशय नी है। पोथी अनुमेय है धन। पाश्चात्य लेखक हडसन रै सबदां में- "What is written will cast, past will it cast." क्यूंकै भगवान शिव अर मां देवी रै मुख सूं उपज्यौड़ी ओ दिव्य काव्य शैली 'डिंगळ' कदै मिट नी सकै। पोथी में कवि 'दीप' लिखै-

 

डिंगल गीत सवैयां छंद दूहा सोरठा, भजनों री रमझोळ है ।
डिंगल देवी रे मुख सूं उपज्योड़ी ,काव्य शैली अनमोल है ।                    पृ. ११४ (२०)

                      अर'

चारणां रे अधरां चहकती डिंगल, रहीम कबीर रसखानी है।
देवी बरणे सुजस 'दीपियो' डिंगल मां देवी रो वरदान है।।                      पृ. ११५ (२०)

ऐक दोहा छंद में कवि कैवे-
सुर तारण खल संहारण, प्रगटी शिव परताप।
रूप असंख रचाविया, पृथी उतारण पाप।।                                          पृ.२६ (२) 

 

डिंगल काव्य शैली नाद उपजावणी गेय ध्वन्यात्मक हौवण सूं लोगां रो कंठहार है, इणमें दो राय नी है।

                      छाती चवड़ी करै अर हरखावै जैड़ी लूंठी बात तो थार धरा बाड़मेर सारूं म्हूं समझूं 'क आ है के कवेसर दीपसिंह भाटी 'दीप' रणधा (जैसलमेर) हाल बाड़मेर १२ जुलाई २०१७ नै डिंगल काव्य अर लोक संस्कृति संवर्धन सारूं "डिंगल रसावल" रै नाम सूं ऐक यूट्यूब चैनल (www.youtube.com/c/dingalrasawal  ) सरू कर्यौ जको आज संसार रै कैई नामी देसां रा मानवी दैखे अर सरावै।                         पृ.८

 

                 राजस्थानी भासा रा हिमायती अर सजग साहितकार दीपसिंह भाटी 'दीप' रणधा री आ पैली पोथी हौतां थकां भी म्हनै आ लखावै है के अणांरी बुगसी में अजां तो कैई पांडुलिपियां छप'र बैगी ई बारै आवैला। आ म्हारी हियै तणी आसीस अर मनोकामना है।

                 श्री भाटीजी री डिंगल काव्य शैली नवोदित कवियों नै सांगोपांग सीख दैवेला, ओ म्हनै पूरो पतियारो है। वाकैई ऐड़ा साहितकार देस रा दीवा है-

डीगी कीधी डिँगळ नै, मरूधरा महकाय।  
दीपो दीवो देस रो, सारो जगत सराय।।

पूरी माता पिता री, दीपे भाटी आस।
हुलराई डिँगल हिवड़े, रसवल आई रास ।।

                   पोथी डिंगल रसावल साहित री हरैक कसौटी माथै खरी उतरती निजर आवै। इणरा कला पख अर भाव पख घणा लूंठा है। वयण सगाई अर छंद अलंकार री छटा घणी सरावण जोग है। इण पोथी ने म्हारी च्यार औळियां आसीस रूप –

 

डिंगल पींगल सगळी बैनां परंपरा सूं आई रे।
सज अणहद नाद अलंकार कंठहार बण आई रे।
आखर ओळी दीप जगमगै छिब मायड़ भासा भायी रे।
'धीर' भणै डिंगळ रसावळ मैमा शिवांगी बण आई रे।।

              सांवठी साहित्यिक पोथी सिरजण बाबत कवि दीपसिंह भाटी 'दीप' नै बधाई अर घणा रंग।

 

 

समीक्षक 
आचार्य स्वामी खुशालनाथ 
'धीर'
अध्यक्ष
बाड़मेर साहित्य संस्थान, बाड़मेर
नाथ भवन, कल्याणपुरा, बाड़मेर

पोथी- डिंगळ रसावळ
लेखक- दीपसिंह भाटी 'दीप'
श्री स्वांगियां सदन, इंद्रा कॉलोनी बाड़मेर
प्रकाशक- रोयल पब्लिकेशन, जोधपुर
सजिल्द पृष्ठ - १२८, मोल- २५० रुपीया

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