नवै रंग रै नूर में परम्परावां नैं पोखती पोथी: डिंगळ रसावळ

नवै रंग रै नूर में परम्परावां नैं पोखती पोथी: डिंगळ रसावळ

आज रै अतिबौद्धिक अरसाव उपयोगितावादी जुग में जठै लोक-परम्परावां नैं रूढियां रो नाम देय कबाड़भेळै राळण रो चाळो चालै, उण टेम मायड़भाषा राजस्थानी रै डिंगळ काव्यरूप नैंपरोटतां आपरी प्रतिभा सूं सुधी पाठकां रै मन नैं बांधण री खिमता राखण वाळैकवि दीपसिंह भाटी दीप रणधा री सद्य-प्रकाशित राजस्थानी काव्यपोथी डिंगळरसावळ इण भाँत री कृति है, जकी नवै रंग रै नूर में प्राचीन परम्परावां नैंपोखै। कवि दीपसिंह भाटी डिंगळ काव्य परम्परा सूं जाझा जुड़्या थका कवेसरहै, जका डिंगळ रचनावां रै सिरजण अर वांरै प्रपाठ करण री रीत-नीत रा जाणीजाणहै।                                                                                        

                          डिंगळ-रसावळ सिरैनाम वाळै यूट्यूब चैनल सूं आपराजस्थानी साहित्य री ख्यातनाम रचनावां, गौरवगाथावां अर अंजसजोग प्रसंगांनैं घणै प्रभावशाली ढंग सूं प्रस्तुत करतां सुधी पाठकां रै दिल में ठावीठौड़ बणाई है। आपरी पोथी डिंगळ रसावळ में अध्यात्म रो उजास, अपणत्व रोआभास, वीरत अर कीरत रा कमठाण, महापुरुषां रा गुण-बखाण, रूंखां री रखवाळी रोभाव अर सनातनी संस्कारां रो सरसाव सरबाळै दीखै। कवि आपरी रचनावां नैंआराधना, सूरवीर-सुजस, महापुरुषां रा बखाण, कुदरत री कोख अर हेत रो हेलो आंपाँच भागां में परोटतां आपरै कवि-कर्म रो वाल्हो निभाव कियो है। इण पोथी रीरचनावां पढियां पाठक कवि दीपसिंह भाटी री सावचेती, समझदारी, जिम्मेदारी अरनेकनियति री पूरी पिछाण कर सकै। आ पोथी कवि भाटी रै व्यक्तित्व रा विविधआयाम आपणै सामी राखै। दैवीय वंदना-आराधनां सूं जुड़ी रचनावां वांरै आस्थावनभक्त रूप नैं सामी लावै तो सूरमावां रै पौरुष रो बखाण वांरै काव्यात्मक ओजरी पिछाण करावै। महापुरुषां रै अनुकरणीय कामां नैं याद करतां वांरै प्रतिअंतस रा उद्गार प्रकट करण री ठौड़ कवि रो कृतज्ञ मिनखापो उभार पावै तो कुदरतरी कोख में वो मरुधरा रो करमठ किरसाण बण आपणै सामी आय ऊभै। इण पोथी नैंजुगबोध सूं जोड़र कवि री लेखणी री मठोठ-मरोड़ नैं आज री पीढी रै सामी लावणवाळो खंड है हेत रो हेला। हेत रो हेलो में आई कवितावां कवि भाटी रीशिक्षकीय चेतना नैं पुष्ट करै।                                                                                                                                                                                                                                           
                         डिंगळ रसावळ पोथी में कवि राजस्थानी रै परम्परागतगीतां अर छंदा यथा दूहा, छप्पय, सवैया, कवित्त, त्रिभंगी, सारसी, रोमकंद, झूलणा, गीत साणोर रै साथै ई आधुनिक काव्य रूपां नैं ई परोट्या है। त्रिभंगीछंद में गिरधर गोपाळ री आराधना वाळै इण दाखलै में डिंगळ काव्य रैनाद-सौंदर्य री छटा देखणजोग है-

गिरधर गोविंदा, दीनन बंदा, भीड़ भगंदा, भगवंदा।
काटे जम फंदा, धरम धरंदा, सकल सुगंधा, समरंदा।
कवि दीप कथंदा, त्रिभंग छंदा, राम रटंदा, रणकारी।
तूं ही त्रिपुरारी, संत सहारी, कुंज बिहारी, किलतारी।।                     (श्री कृष्ण रूपक, पृ. 20)

कवि दीपसिंह भाटी री कवितावां में मातभोम रै प्रति श्रद्धा रीराग अर राष्ट्रानुराग रा वाहळा बहता दीखै। बाहड़मेर री वीरधरा रो सुजसबखाणती रोमकंद छंद री अै ओळियां कवि री मातभोम रै प्रति श्रद्धा रै साथैऊंडी अनुभव दीठ री ई साख भरै

भड़ जोध जुझार दतार भलाभल, तेज मुनेसर ताप तपै।
कवियांण कथै नित वीरत कीरत, थाट जुगोजुग थांन थपै।
परचायक ईसर नाम इळा पर, साधक संत संसार सुणै।
धन रंग बढांण धरा रज धाकड़, जोध समाजिक संत जणै।।     (बाहड़मेर बखांण, पृ. 81)

कवि श्री भाटी नैं लोक देवी-देवतावां, दातारां, जुझारां अरसंतां, भगतां रै प्रति आस्था विरासत में मिली। बाळपणै सूं ई वांनैं संगत रैसार सूं साहित्यिक संस्कार मिल्या। ओ ई कारण है कै वै डिंगळ रा  छंदां रोवाल्हो प्रपाठ प्रस्तुत करै तो आज री टेम में डिंगळ छंदां में आपरै मन राभावां नैं सबदां रै सांचै ढाळण री जुगत करै। कवि इण पोथी में भगवान कृष्ण, आवड़ मां स्वांगियाजी, करणी माताजी, माजीसा भटियाणी रै साथै ही भगत कविईसरदासजी बारहठ, जुझार पनराजजी, जुझार आलाजी, वीर बीकांसी भाटी, संतमोहनपुरीजी, ओम बन्ना, सिद्ध खेमा बाबा अर तारतरा मठ री सिद्ध परंपरा रीवंदणा कर आपरी आस्था रो दीवट संचन्नण कियो है। आं सब चरित्रां री डिंगळ रीपरंपरागत शैली में स्तुति कर कवि आज री डिंगल काव्यधारा में आपरी सशक्तउपस्थिति दर्ज कराई है। इणीं गत हिंदुस्तान री शौर्य परंपरा में उल्लेखणजोगसूरमावां री कड़ी में हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप रै साथै आजाद भारत मेंअनाम उत्सर्ग होवणियां शहीदां नैं याद करतां कवि अमर शहीद पूनमसिंह भाटी, शौर्यचक्र धारक शहीद कानसिंह भाटी, अमर शहीद प्रभुसिंह राठौड़, शहीदराजेन्द्रसिंह भाटी अर शहीद उगमसिंह राठौड़ री वीरत रा वारणा लिया है। कविआज रै समाज नैं प्रेरणा देवणियां महापुरुषां रै सुकृत्यां नैं याद राखण रीसाहित्यिक परंपरा रो निर्वहन करतां डाॅ. नारायणसिंह भाटी, तनसिंहजी चैहान, संत तुलसारामजी जांगिड़, किशोरसिंहजी भाटी, केशरसिंहजी राठौड़ रै सद-करमांमाथै आपरी कलम चलाई है।

                   पोथी रा अंतिम दो भाग साहित्यिक दीठ सूंवाल्ही विरोळ रा अधिकारी है- कुदरत री कोख अर हेत रो हेलो। कुदरत री कोखमें राजस्थानी काव्य री प्रकृति-चित्रण परंपरा में कवि आपरी ओपती हाजरीमांडी है। आधुनिक राजस्थानी प्रकृति काव्य रै रचयिता कवियां में चंद्रसिंहबिरकाळी, नानूराम संस्कर्ता, नारायणसिंह भाटी, नारायणसिंह शिवाकर, लक्ष्मणदान कविया खेण आद रा काव्य उल्लेखणजोग है, उण कड़ी में कवि श्री भाटीरी ओरण इकतीसी, बसंत बहार, बरसाळो, रुत बरसाळा रंग अर दीवाळी आद कवितावांआदर री अधिकारी लागै। हेत रो हेलो में कवि आज रा ताजा विषयां नैं छूवण रीखेंचळ करी है। इणमें यातायात नियमां री जाणकारी अर पालन, मतदान रोमहताऊपणो, जवानी री जोत, आजादी रो अरथ, जीवण मूल्यां री जुगत आद विषयां परओपती जाणकारी देवण रै साथै जीवण-जगत सूं जुड़ी उपयोगी बातां रा बखाण कियाहै।

           सड़क सुरक्षा री दीठ सूं कवि री अै ओळियां कितरीसहज अर सटीक है, जकी आम आदमी नैं हेलमेट लगावण, सीट-बेल्ट बांधण, सड़क परडावै पासै चालण, रफ्तार नैं काबू में राखण आद यातायात नियमां सूं रूबरूकरावती सावधानी हटी अर दुर्घटना घटी रो संदेसो देवै-

हलमेट झुकाय खड़ो दुपवाहन, सीट-पटोज हमेस सजो।
डग डावय हाथ चलो नित डागर, ट्राफिक-रूल मती टपजो।
लगतार वहो पण राखण लीमिट, बुद्धियमान समान बनो।
रफतार संभाळ चलो सड़कां पर, मानुष जूण अमोल मनो।।     (सड़क संभाळ सप्तक, पृ. 103)

कवि मिनखपणै री रीत-नीत समझावतां ‘सीख पचीसी काव्य मेंसमझावै कै मिनख सारू सबसूं अमोल धन उणरो चरित्र हुवै। चरित्र पर काळखलाग्यां पछै, बाकी सब सराजाम बेकार बण जावै। परनारी सूं प्रीत करणियां रीदुरगत नैं कवि जाणै, इण कारण वो आपरै वाल्हां नैं परनारी वाळै पाप सूं बचणरी सलाह देवतां समझावै

परनारी सूं प्रीत, सपनैं में नीं सोचणी।
इणसूं बडी अनीत, दुनियां में नीं दीपिया।।                            (सीख पचीसी पृ. 117)

सार रूप में कवि श्री दीपसिंह भाटी ‘दीप रणधा री डिंगळरसावळ पोथी प्राचीन अर नवीन रो वाल्हो संगम है, जिणमें वरण्य-विषयां अरबरणाव-शैली दोनूं दीठ सूं नवै अर पुराणै रो सांतरो मेळ हुयो है। डिंगळ रापरंपरागत छंदां अर गीतां में साव आज रा सड़क सुरक्षा जैड़ा विषय नैं आपरीरचनावां रा आधार बणाय कवि आपरी अवलोकन दीठ रा प्रमाण प्रस्तुत करै। कविश्री भाटी री आ पोथी आधुनिक राजस्थानी छंदोबद्ध काव्यधारा में आपरो ओपतोमुकाम बणावैली, ओ म्हनैं भरोसो है। अेक निवेदन श्री भाटी सूं अवस करणो चाऊंअर वो ओ है कै पोथी में वर्तनी री दीठ सूं कीं गळतियां रैयगी है। पोथी रोप्रूफ ठीक ढंग सूं नीं पढण रै कारण ओ अशुद्धियां रैयगी, जकी सुधी पाठक नैंअखरै। इण पोथी रो दूजो संस्करण छपावती वेळा विद्वान कवेसर म्हारी अरज नैंध्यान में राखतां आं सब त्रुटियां रो सुधार करैला, आ भोळावण देवणी चाऊंक्यूंकै जड़िया लोह जड़ाव, रतन न फाबै राजिया। कवि श्री दीपसिंह भाटी दीप रणधा नैं वांरी डिंगळ रसावळ पोथी सारू मोकळी-मोकळी बधाई अर मंगलकामनावां।


समीक्षक
डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

सह-आचार्य एवं अध्यक्ष (हिंदी विभाग)
राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़
जिला-चूरू (राजस्थान) 
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