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Dingal Rasawal

डिंगल रसावल साहित्य शृंखला (सभी 8 पुस्तकों का बंडल)

डिंगल रसावल साहित्य शृंखला (सभी 8 पुस्तकों का बंडल)

नियमित रूप से मूल्य Rs. 2,850.00
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डिंगल रसावल साहित्य शृंखला (8 पोथ्या रो सेट )

1. बातां रा गैघट्ट 
2. मरुधरा रा महापुरुष
3. सूरां पूरां री शौर्य गाथावां (भाग - 1)
4. सूरां पूरां री शौर्य गाथावां (भाग - 2)
5. पलपलती प्रेम कथावां
6. डिंगल रसावल काव्य संग्रह
7. डिंगल रो डणको
8. मायड़ भासा रा मुहंगा मोती

सामग्री की सूची

पैली पोथी - बातां रा गैघट्ट
इस पुस्तक में महात्मा गरवो जी, राणो खींवरो, ऐधूळो भाटी भेरजी, जीवणजी जाट, डंक-भडळी, नींबजी भाटी री दाढ़ी, खम्यावान भीलणी, झंवर चौधरी पुरखोजी, कुलधरा, भाटी भोजराज, मिनजी रतनू, रूठी राणी ऊमादे समेत कुल 20 ऐतिहासिक राजस्थानी कहानियाँ सम्मिलित की गई है।

दूजी पोथी - मरुधरा रा महापुरुष
राजस्थान के मरूधरा अंचल में पैदा हुए प्रातः स्मरणीय 24 महापुरुषों के अनुकरणीय व्यक्तित्व और विभूतिमान कृतित्व की झांकी को इस पुस्तक में उकेरा गया है। राजस्थानी गद्य शैली में चित्रित इस पुस्तक में मरुधरा के 4 लोक देवता, 10 सिद्ध योगी महात्मा और 10 काबिले तारीफ कर्मयोगी उल्लेखित है।

तीसरी पोथी - पलपलती प्रेम कथावां
राजस्थानी भाषा में लिखित हुई एकनिष्ठ प्रेम और मठोठ वाली पंद्रह ऐतिहासिक बेमिसाल प्रेम कथाएं। शुद्ध, सात्विक और मर्यादित प्रेम कहानियां जिनको उकेरने में डिंगल छंदों और अलंकारों से सजी हुई मायड़ भाषा राजस्थानी का विलक्षण उपयोग किया गया है।

चौथी पोथी - सूरां पूरां री शौर्य गाथावां (भाग-1)
इस पुस्तक में आर्यावर्त के 21 योद्धा-शूरवीरों की ऐतिहासिक शौर्यगाथाओं को शामिल किया गया है। सभी कहानियां सरल और सहज राजस्थानी भाषा में सृजित है। हर कहानी के साथ QR कोड संलग्न है, जिसे स्कैन करके सम्बंधित विडियो देख सकते हैं।

पाँचवी पोथी - सूरां पूरां री शौर्य गाथावां (भाग-2)
वीर रस और श्रंगार रस के छंदों से संतृप्त राजस्थानी भाषा की इस पुस्तक में वर्तमान भारत के युद्ध वीर जनरल विपिनसिंह रावत से लेकर ईस्वी सन 194 में हुए विश्व इतिहास के प्रथम शाका के नायक भाटी राजा गजसेन-सहदेव के उद्भट पराक्रम की शौर्य गाथाएं सम्मिलित की गई है।

छठवी पोथी - डिंगल रसावल काव्य संग्रह
इस पुस्तक में शुद्ध साहित्यिक छंदोबद्ध व अलंकार युक्त डिंगल काव्य शैली के नाद सौंदर्य से अलंकृत 42 रचनाएं प्रकाशित है। ईश आराधना, शूरवीरों का शौर्य , महापुरुषों का महिमा मंडन, प्राकृतिक संपदा और जीवनोपयोगी प्रेरक बातें डिंगल काव्य के रस में सराबोर कर परौसी गई है।

सातवीं पोथी - डिंगल रो डणको
इस पुस्तक में राजस्थान के वीर योद्धाओं, लोक देवताओं, संतों, महापुरुषों की कीर्ति का डिंगल कविताओं, छंदों, दोहों, गीतों आदि के माध्यम से महिमामंडन किया गया है। प्राचीन काव्य शैली 'डिंगल' में छंदों और दोहों की रचना शुद्ध साहित्यिक एवं परिपक्व गेय शैली में की गई है।

आठवी पोथी - मायड़ भासा रा मुहंगा मोती
श्री माजीसा मंदिर संस्थान जसोल धाम द्वारा प्रकाशित, ठाकुर पूरणसिंह जी बूड़ीवाड़ा द्वारा संकलित और डिंगल रसावल निदेशक दीपसिंह भाटी 'दीप' द्वारा संपादित परंपरागत मूल राजस्थानी काव्य कृति मायड़ भासा रा मुंहगा मोती पुस्तक में डिंगल एवं राजस्थानी कविताओं, दोहों, छंदों एवं गेय काव्य का संकलन किया गया है।

हाइलाइट

• डिंगल काव्य रे छंदों रो जबरदस्त जायका
• साहित्य रे नौ रसों रो सांगोंपाँग परिपाक
• साहित्य री संप्रेषणीय शैली बातपोश विधा रो सजीव चित्रण
.• इतिहास अर साहित्य रे पन्नों सूं लुप्त कहानियां
• इतिहास रे पन्नों सूं वंचित वीरों रो महिमा मंडन
• सरल, सहज ग्राह्म अर रोचक भाषा शैली
• सांस्कृतिक मूल्यों रो विलक्षण संगम
• ऐतिहासिक तथ्यों माथे आधारित
• हर कहानी रो वीडियो देखण सारूँ क्यू आर कोड.

विवरण

• डिंगल काव्य रे छंदों रो जबरदस्त जायका
• साहित्य रे नौ रसों रो सांगोंपाँग परिपाक
• साहित्य री संप्रेषणीय शैली बातपोश विधा रो सजीव चित्रण
.• इतिहास अर साहित्य रे पन्नों सूं लुप्त कहानियां
• इतिहास रे पन्नों सूं वंचित वीरों रो महिमा मंडन
• सरल, सहज ग्राह्म अर रोचक भाषा शैली
• सांस्कृतिक मूल्यों रो विलक्षण संगम
• ऐतिहासिक तथ्यों माथे आधारित
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