
इण सप्ताह री पोथी - सूरां पूरां री शौर्य गाथावां भाग -1
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देवण रो जसजोगो काम करै। कथाकार आज री अफलातून पीढ़ी नैं आं शौर्य-गाथावां रै बहानैं आ समझावण री खेचळ करै कै बीती नैं चितार्यां बिना अर भावी नैं संवार्यां बिना फगत वरतमान री कार्यां सूं जीवण सुधार्यां काम नीं चालै। इतिहास अनुभव रो कथाकार री भावना नैं गद्य री बजाय पद्य में इण भांत समझ सकां-
बीती नैं बिसरै परो, भावी करै न भान।
इतरावै जो आज पर, वांरो पतन निदान।
वांरो पतन निदान, अहम बस साख उजाड़ै।
लोक हंसी घर हाण, जाण कर जूण बिगाड़ै।
गहै पाण ‘गजराज’, करो मत इती अनीती।
भावी रो कर भान, बिसर मत बातां बीती।। शक्तिसुत।।
कथाकार श्री दीपसिंह भाटी मंजेड़ा बातपोस है, जका आपरी हर कथा रै श्रीगणेश में अेक वाल्ही भूमिका बणावै। कई बार किणी दूहै-सोरठै सूं बात सरू करै तो कई बार किणी लोकप्रसिद्ध उक्ति या कथन सूं बात पोळावै। वै ‘रामजी भला दिन दे’ जैड़ी लोककथा वाळी परम्परा नैं निभावण में भी लारै नीं है। कथाकार प्रारंभिक माहौल में किणी अनुकरणीय आदर्श री थापणा करै अर उणनैं पुख्ताऊ करण सारू गीतां-दूहां रा दाखला देवै। जद श्रोता वांरी लेखनी रै जादू में बंधणो सरू करै तद श्री भाटी आपरी संकल्पित कथा रो साचकलो श्रीगणेश करै। ‘वीर तेजाजी महाराज’ सिरैनाम वाळी शौर्यगाथा रो श्रीगणेश देखो-
‘‘रंगरूड़ै राजस्थान री माटी रै कण-कण में वीर-वीरांगनावां रै तप, त्याग, बलिदान अर सूरापै री गौरव गाथावां गूंजै। देस री आन, बान, धरम, संस्कृति, इज्जत-आबरू बचावण सारू अठै रै अलबेलां कदै पाछो पग नीं मेल्यो। देस, धरम अर गौमाता री रिछ्या सारू अठै रा सती-सूरमा आपरी जीया-जूण अरपै, वै जनमानस में लोक देवता रै नाम सूं पूजीजै। बाबा रामापीर, पाबूजी राठौड़, सिद्ध खेमा बाबा, भाटी जुझार पनराजजी, आलाजी, बीकांसीजी, मल्लीनाथजी, रूपांदेजी, जंभेश्वरजी आद लोक देवतावां नैं आज भगती अर श्रद्धा भाव सूं आखो मानखो मानै। लोकदेवतावां री पांत में अेहड़ा सपूत, गौ-भगत अर जबान रा धणी जुझार हुया-तेजाजी महाराज।’’
श्री भाटी री आ पोथी ‘सूरां-पूरां री शौर्य गाथावां’ राजस्थानी वात साहित्य अर आधुनिक राजस्थानी री ऐतिहासिक कहाणियां रै बिचाळै अेक मजबूत सेतु जैड़ो काम करैला। राजस्थानी लोककथावां री गत्यात्मकता, कौतूहलपणो, कथा क्रम रो निभाव अर सांतरै संदेस रो संप्रेषण आद समूचा तत्त्व श्री भाटी री आं कथावां में हंसता-हरखता निगै आवै।
आं शौर्यगाथावां में कथाकार री आपरै चरित्र नायकां रै प्रति श्रद्धा, राष्ट्र रै प्रति अनुराग अर मायड़ भाषा रै प्रति सनमान री भावनावां तो उजागर हुवै ई है, उणरै साथै आज रै राज अर समाज सारू आं कथावां री उपादेयता भी स्वयंसिद्ध है। जिण भांत सोनै नैं आग में तपायां उणरी कीमत बध जावै, उणी भांत परकत प्रदत्त संघर्षां अर अबखायां सूं लगोलग जूझता रैवण सूं राजस्थान रै वीरां री सूरमाई में निकेवळो निखार आयो है। आ तो परखी-पितायी बात है कै आंच में तो फगत साच ई टिकै अर उणी साच में सूरापै रा बीज बापरै। श्री भाटी आखै हिंदुस्तान रै इतिहास सूं इसा 21 घण उपजाऊ टाळवां बीजां नैं आपरै सिरजण रा आधार बणाया है, जका अभावां री आंधियां, तोतक रै तूफानां अर कुटळाई रै कुठारां री मारां सूं दो-दो हाथ करतां वटवृक्ष बण आपरी सुकृत-सोरम सूं मुलक नैं महकायो। आं गाथावां रै नायकां री जीवण-दीठ अर आस्थावां नैं देख दुनियां दांता तळै आंगळ्यां दबावै। आंरी रजवट-रीतां अर प्रघळी प्रीतां, मरजादा रो माण अर गुणां रो बखाण, सतपथ रो वरण अर ऊजळो आचरण, धारा-तीरथ रो धारो अर भवितव्यता में पतियोरो, जस-जीवण रो राग अर सामधरम अनुराग, बलिदानी बाण अर अनूठी आण हर जुग रै जीवण-घमसाण में मिनखाचारै नैं बचाण सारू उपादेय रही है, आज भी है अर आगै भी रैसी।
अै शौर्यगाथावां कोरै इतिवृत्त पर ऊभा कथानक नीं है। अै पैली अंजस रा आसार अर जस-जीवण रो आधार है, उण पछै बाकी सब कुछ है। कथाप्रबंध में अेक ओपतो बांकपण लाजमी चाईजै, जिणनैं गुणी आचार्य प्रबंध-वक्रता री संज्ञा सूं अभिहीत करै। ओ बांकपण काव्य में रसानुभूति अर कथा में रोचकता प्रदान करै। रोचकता सारू कथाकार कई बार नीरस अर गैर-जरूरी प्रसंगां नैं आंतरै करतां वांरी ठौड़ नया अर रसपूर्ण प्रसंगां नैं जोड़ देवै।
श्री भाटी री आं शौर्यगाथावां में इण तथ नैं अंगीकार करै। हो सकै इतिहासकारां नैं आ बात अखरै पण इतिहास अर साहित्य रै बिचाळै अेक झीणो अंतर है, उणनैं समझ्यां वांरी उळझण मिट जावैला। हलांकै पूर्वापर प्रसंगपूर्ण रचनावां में इयांकली जोड़-तोड़ कमोबेस सगळै ई मिलै पण इण तथ अर कथ री कळा नैं समझण सारू जीवण-मरम रो पूरण परिज्ञान होवणो जरूरी है। म्हैं कथाकार श्री दीपसिंह भाटी ‘दीप’ नैं इण गरबीलै अर गीरबैजोग सिरजण सारू मोकळी-मोकळी बधाई देवतां वांरी लेखनी रै तौर नैं तर-तर बधतो देखण री आस करूं। आं शौर्यगाथावां रै विषय में कहण-सुणण री बजाय आंनैं खुद नैं सुणण-पढण सूं ई असली आणंद मिल सकै, म्हैं मायड़भाषा राजस्थानी रै हेताळुआं सूं अरज करूं कै वै इण पोथी री अेक-अेक गाथां नैं पढै, सुणै -
रणधै भाटी भल रची, गौरव हंदी गाथ।
कहियां अंजसै काळजो, सुणियां हिय सरसात।। शक्तिसुत।।
समीक्षक
डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’
सह-आचार्य एवं अध्यक्ष (हिंदी विभाग)
राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़
जिला-चूरू (राजस्थान)
बीती नैं बिसरै परो, भावी करै न भान।
इतरावै जो आज पर, वांरो पतन निदान।
वांरो पतन निदान, अहम बस साख उजाड़ै।
लोक हंसी घर हाण, जाण कर जूण बिगाड़ै।
गहै पाण ‘गजराज’, करो मत इती अनीती।
भावी रो कर भान, बिसर मत बातां बीती।। शक्तिसुत।।
कथाकार श्री दीपसिंह भाटी मंजेड़ा बातपोस है, जका आपरी हर कथा रै श्रीगणेश में अेक वाल्ही भूमिका बणावै। कई बार किणी दूहै-सोरठै सूं बात सरू करै तो कई बार किणी लोकप्रसिद्ध उक्ति या कथन सूं बात पोळावै। वै ‘रामजी भला दिन दे’ जैड़ी लोककथा वाळी परम्परा नैं निभावण में भी लारै नीं है। कथाकार प्रारंभिक माहौल में किणी अनुकरणीय आदर्श री थापणा करै अर उणनैं पुख्ताऊ करण सारू गीतां-दूहां रा दाखला देवै। जद श्रोता वांरी लेखनी रै जादू में बंधणो सरू करै तद श्री भाटी आपरी संकल्पित कथा रो साचकलो श्रीगणेश करै। ‘वीर तेजाजी महाराज’ सिरैनाम वाळी शौर्यगाथा रो श्रीगणेश देखो-
‘‘रंगरूड़ै राजस्थान री माटी रै कण-कण में वीर-वीरांगनावां रै तप, त्याग, बलिदान अर सूरापै री गौरव गाथावां गूंजै। देस री आन, बान, धरम, संस्कृति, इज्जत-आबरू बचावण सारू अठै रै अलबेलां कदै पाछो पग नीं मेल्यो। देस, धरम अर गौमाता री रिछ्या सारू अठै रा सती-सूरमा आपरी जीया-जूण अरपै, वै जनमानस में लोक देवता रै नाम सूं पूजीजै। बाबा रामापीर, पाबूजी राठौड़, सिद्ध खेमा बाबा, भाटी जुझार पनराजजी, आलाजी, बीकांसीजी, मल्लीनाथजी, रूपांदेजी, जंभेश्वरजी आद लोक देवतावां नैं आज भगती अर श्रद्धा भाव सूं आखो मानखो मानै। लोकदेवतावां री पांत में अेहड़ा सपूत, गौ-भगत अर जबान रा धणी जुझार हुया-तेजाजी महाराज।’’
श्री भाटी री आ पोथी ‘सूरां-पूरां री शौर्य गाथावां’ राजस्थानी वात साहित्य अर आधुनिक राजस्थानी री ऐतिहासिक कहाणियां रै बिचाळै अेक मजबूत सेतु जैड़ो काम करैला। राजस्थानी लोककथावां री गत्यात्मकता, कौतूहलपणो, कथा क्रम रो निभाव अर सांतरै संदेस रो संप्रेषण आद समूचा तत्त्व श्री भाटी री आं कथावां में हंसता-हरखता निगै आवै।
आं शौर्यगाथावां में कथाकार री आपरै चरित्र नायकां रै प्रति श्रद्धा, राष्ट्र रै प्रति अनुराग अर मायड़ भाषा रै प्रति सनमान री भावनावां तो उजागर हुवै ई है, उणरै साथै आज रै राज अर समाज सारू आं कथावां री उपादेयता भी स्वयंसिद्ध है। जिण भांत सोनै नैं आग में तपायां उणरी कीमत बध जावै, उणी भांत परकत प्रदत्त संघर्षां अर अबखायां सूं लगोलग जूझता रैवण सूं राजस्थान रै वीरां री सूरमाई में निकेवळो निखार आयो है। आ तो परखी-पितायी बात है कै आंच में तो फगत साच ई टिकै अर उणी साच में सूरापै रा बीज बापरै। श्री भाटी आखै हिंदुस्तान रै इतिहास सूं इसा 21 घण उपजाऊ टाळवां बीजां नैं आपरै सिरजण रा आधार बणाया है, जका अभावां री आंधियां, तोतक रै तूफानां अर कुटळाई रै कुठारां री मारां सूं दो-दो हाथ करतां वटवृक्ष बण आपरी सुकृत-सोरम सूं मुलक नैं महकायो। आं गाथावां रै नायकां री जीवण-दीठ अर आस्थावां नैं देख दुनियां दांता तळै आंगळ्यां दबावै। आंरी रजवट-रीतां अर प्रघळी प्रीतां, मरजादा रो माण अर गुणां रो बखाण, सतपथ रो वरण अर ऊजळो आचरण, धारा-तीरथ रो धारो अर भवितव्यता में पतियोरो, जस-जीवण रो राग अर सामधरम अनुराग, बलिदानी बाण अर अनूठी आण हर जुग रै जीवण-घमसाण में मिनखाचारै नैं बचाण सारू उपादेय रही है, आज भी है अर आगै भी रैसी।
अै शौर्यगाथावां कोरै इतिवृत्त पर ऊभा कथानक नीं है। अै पैली अंजस रा आसार अर जस-जीवण रो आधार है, उण पछै बाकी सब कुछ है। कथाप्रबंध में अेक ओपतो बांकपण लाजमी चाईजै, जिणनैं गुणी आचार्य प्रबंध-वक्रता री संज्ञा सूं अभिहीत करै। ओ बांकपण काव्य में रसानुभूति अर कथा में रोचकता प्रदान करै। रोचकता सारू कथाकार कई बार नीरस अर गैर-जरूरी प्रसंगां नैं आंतरै करतां वांरी ठौड़ नया अर रसपूर्ण प्रसंगां नैं जोड़ देवै।
श्री भाटी री आं शौर्यगाथावां में इण तथ नैं अंगीकार करै। हो सकै इतिहासकारां नैं आ बात अखरै पण इतिहास अर साहित्य रै बिचाळै अेक झीणो अंतर है, उणनैं समझ्यां वांरी उळझण मिट जावैला। हलांकै पूर्वापर प्रसंगपूर्ण रचनावां में इयांकली जोड़-तोड़ कमोबेस सगळै ई मिलै पण इण तथ अर कथ री कळा नैं समझण सारू जीवण-मरम रो पूरण परिज्ञान होवणो जरूरी है। म्हैं कथाकार श्री दीपसिंह भाटी ‘दीप’ नैं इण गरबीलै अर गीरबैजोग सिरजण सारू मोकळी-मोकळी बधाई देवतां वांरी लेखनी रै तौर नैं तर-तर बधतो देखण री आस करूं। आं शौर्यगाथावां रै विषय में कहण-सुणण री बजाय आंनैं खुद नैं सुणण-पढण सूं ई असली आणंद मिल सकै, म्हैं मायड़भाषा राजस्थानी रै हेताळुआं सूं अरज करूं कै वै इण पोथी री अेक-अेक गाथां नैं पढै, सुणै -
रणधै भाटी भल रची, गौरव हंदी गाथ।
कहियां अंजसै काळजो, सुणियां हिय सरसात।। शक्तिसुत।।
समीक्षक
डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’
सह-आचार्य एवं अध्यक्ष (हिंदी विभाग)
राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़
जिला-चूरू (राजस्थान)