लोंगेवाला हीरो भैरोंसिंह री गौरवगाथा | Bhairon Singh Rathore | Hero of Longewala War | डिंगल रसावल
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लोंगेवाला हीरो भैरोंसिंह री गौरवगाथा 🚩
संदेसे आते हैं , हमें तड़पाते हैं ।
जो चिट्ठी आती है वो पूछे जाती है,
के घर कब आओगे, लिखो कब आओगे!
के तुम बिन ये घर सूना, सूना है ।।
नब्बे के दशक में बनी बॉर्डर फिल्म का यह गीत आज भी काफी लोकप्रिय है जो फौजियों के साथ ही हर भारतवासी में देशभक्ति भाव भर देता है। इस फिल्म में 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का सांगोपांग दर्शन दिखाया गया है। लेकिन फिल्म तो आखिर फिल्म ही होती है जो युद्ध वीरो के बनावटी दर्शन बता कर लोगों का मनोरंजन किया करती है।
आपको याद होगा कि इस फिल्म में अभिनेता सुनील शेट्टी सन 1971 भारत-पाक युद्ध के महानायक वीर भैरो सिंह राठौड़ का किरदार निभाते हैं और फिल्म में उन्हें शहीद बताया गया है लेकिन असलियत में उस वक्त भैरों सिंह जी जिंदा थे। लेकिन शूरवीरों का यह सरताज युद्धवीर पिछले 19 दिसंबर 2022 को इस संसार को अलविदा कह गया। देश के इस अलबेले शूरवीर ने किस तरह पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाए, इस मुद्दे के ऐतिहासिक गौरवगाथा आपको सुनाते हैं। शेरगढ़ के शूरवीर भैरोंसिंह का जन्म सोलंकिया तला (जोधपुर) में ठाकुर मानसिंह जी की धर्मपत्नी अमुकंवर जी की कोख से 16 जुलाई 1946 को हुआ था। भैरों सिंह जी के तीन भाई: शेर सिंह, खेम सिंह और नरपत सिंह और तीन ही बहने थी। भैरों सिंह जी 5 अप्रैल 1963 को आई. ए.सी में भर्ती हुए और 1966 में बी. एस. एफ ज्वाइन कर देश की सेवा करने लगे।
1971 के भारत-पाक युद्ध के वक्त वे बीएसएफ की 14 बटालियन की “डी कंपनी” की तीसरे नंबर की प्लाटून में जैसलमेर की “लोंगेवाला चौकी” पर तैनात थे। आर्मी की 23 पंजाब की एक कंपनी ने मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में भैरों सिंह के साथ लोंगेवाला की जिम्मेदारी संभाल ली। इस पोस्ट से पाकिस्तान बॉर्डर सिर्फ 5 कोस (15 किमी) की दूरी पर थी। सेना ने भैरोंसिंह को पंजाब की कंपनी के गाइड के रूप में लोंगे वाला चौकी संभालने का आर्डर दिया। भैरों सिंह वहां के आसपास के इलाके से अच्छी तरह से वाकिफ थे, सो उन्होंने पंजाब की पलटन (कंपनी) के साथ पेट्रोलिंग कर उन्हें उस क्षेत्र की संपूर्ण जानकारी दी।
नायक भैरों सिंह राठौड़ ने पंजाब बटालियन के साथ मोर्चा संभाल लिया। आधी रात के दौरान हेड क्वार्टर से वायरलेस पर खबर आती है कि पाकिस्तानी फौज 45 टैंकों और 3000 सिपाहियों के साथ लोंगे वाला पोस्ट की तरफ बढ़ रही है और उनके पास काफी सशक्त टैकें भी है। लेकिन यहां हिंदुस्तानी सिपाहियों के पास सिर्फ राइफल और गोला-बारूद ही थे। भैरों सिंह ने एयर फोर्स से बात कर मदद मांगी लेकिन रात के कारण हवाई जहाज उड़ नहीं सकते और मदद नहीं मिल सकी। इस मौके मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने भैरों सिंह को कहा कि, "आपकी सुरक्षा के लिए आप चाहें तो अपनी बटालियन के साथ वापस सादेवाला पोस्ट पर जा सकते हैं।"
जवाब में भैरू सिंह ने कहां, "यह हरगिज़ नहीं हो सकता, हम तो यहीं रहेंगे और यही लड़ेंगे।" रात के करीब 2:00 बजे पाकिस्तानी सेना ने टैंकों से बम बरसाना शुरू कर दिए। भैरों सिंह के साथ हिंद के युद्ध वीरों ने मोर्चा संभाला और जवाबी फायर खोलने शुरू किए। इस दौरान लाइट मशीनगन से गोलियां दागने वाले एक भारतीय सिपाही घायल हो गया। भैरों सिंह ने उस सिपाही को मेडिकल मदद खातिर वहां से भेज दिया और खुद ने LMG (बंदूक) संभाली।
जाँबाज भैरों सिंह राठौड़ अपना मोर्चा संभालते हुए 7 घंटों तक पाकिस्तानी टैंकों के सामने LMG गन से धुआंधार फायर करने से जैसलमेर के धोरे तक कांप उठे। और दुश्मनों पीछे हटने को मजबूर हो गए। इस दौरान अचूक निशानेबाज युद्धवीर भैरोसिंह दनादन गोलियां दाग के लगभग 30 पाकिस्तानी सिपाहियों को मौत के घाट उतार देते हैं। देवी श्री तनोट राय माता जी की कृपा से भैरो सिंह का एक बाल भी बांका नहीं हुआ। युद्ध कला में पारंगत भैरों सिंह का मोर्चा ऐसी विशेष व सुरक्षित जगह पर था जहां दुश्मन का एक भी निशाना कामयाब नहीं हो सका। गोलियों के साथ ही युद्धवीर की गगनभेदी जयकारों से पाकिस्तानी सिपाही चकित हो घबरा उठे। रात भर लगभग 7 घंटों तक मां भारती के वीरों ने दुश्मनों को एक पैर तक आगे रखने नहीं दिया। अगले दिन जैसे ही सूर्य की पहली किरण धरती पर पड़ी, उसी वक्त हिंद के लड़ाकू हवाई जहाज लोंगेवाला पोस्ट के चारों ओर छा चुके थे। भारत के लड़ाकू विमानों ने जोरदार बमबारी कर पाकिस्तान टैंको का भंगार बना दिया था।
हिंदुस्तानी वीर सैनिकों के बुलंद हौसले देख पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा। भारत की सांगोपांग जीत हुई। इस शूरवीरता की बदौलत 1972 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान ने भैरों सिंह राठौड़ को सेना मेडल से नवाजा। मातृभूमि की 24 वर्ष समर्पित सेवा कर भैरों सिंह 19 दिसंबर 1986 को सेवानिवृत्त हुए और संयोग से सेवनिवृति से ठीक 35 वर्ष तक समाज सेवा के कार्य कर 19 दिसंबर 2022 को स्वर्ग सिधार गए। इस एतिहासिक जीत से कई सामाजिक संगठनों और प्रशासन भैरों सिंह जी को कई बार सम्मानित भी किया।
दूसरी ओर 1971 के युद्ध में जनरल हनूत सिंह ने पूना हॉर्स की 47 इन्फेंट्री ब्रिगेड को कमांड कर बसंतर नदी किनारे पर मोर्चा जमाया। जनरल हनूत सिंह की वीर गाथा आप डिंगल रसावल यूट्यूब चैनल पर सुन चुके होंगे (लिंक: https://www.youtube.com/watch?v=EUSCcNujGbc )
लगातार दो दिन तक हुए इस घमासान में हनुत सिंह के शूरवीरों ने पाकिस्तानी सेना की हड्डी पसली एक कर दी थी। अंततः हनुत सिंह की सशक्त युद्ध नीति, होशियारी, और इष्ट बल से भारत की सभी टैंके सकुशल बसंतर नदी पार कर पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़ी । हनूत सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना पर हुए इस हमले में पाकिस्तान की 50 टैंके तबाह हो गई। 13 दिन तक चली इस लड़ाई में आखिरकार 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की फौज ने 92 हजार सिपाहियों के साथ भारत की सेना के सामने शस्त्र डाल दिए । हिंदुस्तान की जीत हुई। 16 दिसंबर को आज भी हिंदुस्तान में “विजय दिवस” के रुप में मनाया जाता है। एक बार बाड़मेर (राजस्थान) में आयोजित “थार के वीर” कार्यक्रम में भैरों सिंह जी बाड़मेर आए तब उनसे मुलाकात हुई। भैरों सिंह जी ने बताया कि, "आज के युवा को पता तक नहीं है कि लोंगेवाला है कहां ?" आपका कहना था कि "गुलाम भारत के वीरों के त्याग बलिदान की कहानियां तो युवाओं को बहुत पढ़ाई जाती है लेकिन आजाद भारत के जिंदा योद्धाओं की कहानियाँ कहीं पढ़ाई नहीं जाती, यह अफसोस की बात है।" साहित्यकारों को इस विषय में कदम उठाने चाहिए।
भैरों सिंह जी ने कहा कि "फिल्म में मुझे भले ही शहीद बताया गया था लेकिन मैं हाल तक जिंदा हूं। सरकार की तरफ से मुझे सिर्फ 12 हजार की पेंशन से ज्यादा कुछ नहीं दिया गया है। न तो कोई जमीन मिली और नहीं कोई अन्य वीरता पैकेज दिया गया। गांव में 25 बीघा जमीन है जिससे ही गुजारा चलता है वह भी अगर बरसात होती है तभी।" बॉर्डर फिल्म में भैरो सिंह की पत्नी का नाम फूल कंवर बताया गया है लेकिन हकीकत यह है कि भैरों सिंह जी का विवाह ही बाद में हुआ और उनकी पत्नी का नाम प्रेम कंवर जी था।
“थार के वीर” बाड़मेर महोत्सव के संयोजक रघुवीर सिंह बताते हैं कि थार के वीर के सालाना कार्यक्रम में 29 फरवरी 2020 और 7 दिसंबर 2021 के मौके वीर भैरों सिंह को परमवीर चक्र विजेता सूबेदार संजय कुमार, मेजर जनरल नरपत सिंह राजपुरोहित और थार के वीर के संरक्षक रावत त्रिभुवन सिंह जी ने समान कर महिमामंडन किया। उस वक्त के कमांडेंट प्रदीप कुमार जी शर्मा ने भैरोंसिंह जी को किसी होटल में विश्राम कराने की जगह अपने घर में रुकवा कर रात भर युद्ध जीवन की बातें की। उसके बाद आपका बीएसएफ, आर्मी, एयरफोर्स, गृह मंत्री जी ने भी सम्मान किया। एक बार सणतरा (राजस्थान) में शहीद दीपाराम सुथार की मूर्ति अनावरण के मौके उन्हें बुलाकर पूर्व सैनिक कल्याण मंत्री प्रेम सिंह जी बाजोर ने भी सम्मान किया।
1971 के युद्ध की जीत के बाद 1973 में 28 वर्ष की उम्र में भैरों सिंह का विवाह विवाह बालेसर (जोधपुर) की प्रेमकंवर जी से हुआ जिनसे एक पुत्र सवाई सिंह और एक पुत्री जसूकंवर का जन्म हुआ। भैरों सिंह जी की पत्नी और दो भाई देवलोक हो चुके हैं। सबसे छोटे भाई नरपत सिंह जी राजपूताना राइफल्स से सेवानिवृत्त फौजी है और गांव में ही रहते हैं।
हाल ही में 19 दिसंबर 2022 को लगभग 80 वर्ष की उम्र में भैरों सिंह जी का स्वर्गवास हो गया। देश के प्रधानमंत्री मोदी जी, मुख्यमंत्री अशोक जी, समेत कई नामी हस्तियाँ भैरों सिंह जी के निधन से दिलगिर हुए। शूरवीर भैरों सिंह जी की गौरव गाथा में साहित्यकार सिंह मदन सिंह जी और भेरू सिंह जी ने मेरी सहायता की, वे साधुवाद के पात्र हैं।
धन्य मां भारती के सपूत वीर भैरों सिंह जी! धन्यवाद
© दीपसिंह भाटी
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